Friday, August 15, 2025
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महाराष्ट्र चुनाव में ‘वोटों का जादू ? राहुल vs भाजपा की जंग, चुनाव आयोग चुप क्यों

चुनाव आयोग भारतीय राजनीति में चुनावी निष्पक्षता का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका के बोस्टन में आयोजित एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव-2024 की प्रक्रिया और चुनाव आयोग (EC) की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। इसके जवाब में भाजपा ने उन पर “राष्ट्रविरोधी एजेंडा” चलाने का आरोप लगाया है। यह विवाद सिर्फ़ दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने भारतीय लोकतंत्र की मज़बूती और संस्थागत विश्वसनीयता पर गंभीर बहस छेड़ दी है।  

चुनाव आयोग चुप क्यों आंकड़ों में अंतर्विरोध: क्या कहता है गणित? 

राहुल गांधी ने अपने भाषण में महाराष्ट्र चुनाव के दौरान दर्ज हुए मतदान आंकड़ों को “सांख्यिकीय असंभव” बताया। उनके अनुसार:  

 समय और मतदान का अंतराल : शाम 5:30 बजे तक कुल 2.25 करोड़ मतदान दर्ज किया गया, लेकिन अगले दो घंटे (5:30 से 7:30 बजे) में 65 लाख अतिरिक्त वोट जोड़े गए। 

 तकनीकी विश्लेषण : प्रति मतदाता औसतन 3 मिनट का समय मानें तो 65 लाख वोट डालने के लिए 3.25 लाख मतदान केंद्रों में लगभग 20 घंटे चाहिए, जबकि मतदान अवधि केवल 2 घंटे थी।  

ईवीएम क्षमता पर सवाल : एक ईवीएम मशीन प्रति घंटे अधिकतम 120 वोट ही रिकॉर्ड कर सकती है। इस हिसाब से 2 घंटे में प्रति मशीन 240 वोट संभव हैं, लेकिन महाराष्ट्र में मशीनों की संख्या और वोटों का अनुपात इस गणना से मेल नहीं खाता।  

भाजपा का पलटवार: ‘विदेशी साजिश’ का नैरेटिव 

राहुल के बयानों को भाजपा ने “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि धूमिल करने की साजिश” करार दिया। पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा:  

जॉर्ज सोरोस कनेक्शन :हुल उन ताक़तों के एजेंट हैं जो भारत को कमज़ोर करना चाहती हैं। अमेरिका में सोरोस-समर्थित संगठनों से मुलाक़ातें इसका सबूत हैं।”

ऐतिहासिक आरोपों की पुनरावृत्ति : “2013 के राष्ट्रीय हेराल्ड घोटाले और 2008 के न्यूक्लियर डील मामले में भी यही परिवार संदिग्ध रहा है।”  

हालाँकि, कांग्रेस ने इन आरोपों को “सच्चाई से ध्यान भटकाने की कोशिश” बताया है।  

चुनाव आयोग की चुप्पी: संदेह को बढ़ावा?   

इस पूरे विवाद में चुनाव आयोग की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने 2022 में चेतावनी दी थी: “संस्था की स्वायत्तता ख़तरे में है।” हाल के वर्षों में EC पर निम्नलिखित आरोप लगे हैं:  

– 2023 में ईवीएम-वीवीपैट मांगने वाले 12 राज्यों के राज्यपालों की याचिका को नज़रअंदाज़ किया गया।  

– 2024 के गुजरात चुनाव में 11 लाख “फ़ंटे वोट” का मामला अभी तक सुलझा नहीं है।  

विशेषज्ञों का मानना है कि EC को तत्काल एक व्हाइट पेपर जारी करना चाहिए, जिसमें सभी आरोपों का तथ्यात्मक खंडन हो।  

राजनीतिक रणनीति: किसके हित में है यह विवाद?   

1.  कांग्रेस के लिए फ़ायदे :  

   – विपक्षी दलों को एकजुट करने का मौका।  

   – युवा मतदाताओं को “संस्थागत पक्षपात” के मुद्दे से जोड़ना।  

2.  भाजपा का लक्ष्य :

   – राष्ट्रवाद बनाम विद्रूप की बहस को हवा देना।  

   – 2024 के चुनाव से पहले राहुल को “अविश्वसनीय नेता” साबित करना।  

तथ्य-जांच: क्या कहते हैं आधिकारिक आंकड़े? 

महाराष्ट्र चुनाव आयोग के अनुसार:  

 कुल पंजीकृत मतदाता : 9.18 करोड़  

 मतदान प्रतिशत : 61.4% (5.64 करोड़ वोट)  

 विवादित अवधि में वोट : 6.8% (लगभग 62.4 लाख)  

 गणितीय विसंगति : यदि 2.25 करोड़ वोट 10 घंटे (सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक) में डाले गए, तो प्रति घंटे 22.5 लाख वोट का औसत है। लेकिन अंतिम 2 घंटे में 62.4 लाख वोट का मतलब प्रति घंटे 31.2 लाख वोट, जो पहले के औसत से 38% अधिक है।  

 लोकतंत्र की जीत या हार?   

यह विवाद उस सामाजिक विभाजन को गहरा करता है जहाँ हर पक्ष दूसरे को “देशद्रोही” घोषित करने में लगा है। आवश्यकता इस बात की है कि:  

1. चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ब्लॉकचेन जैसी तकनीक का उपयोग किया जाए।  

2. सभी राजनीतिक दल मिलकर एक समग्र चुनाव सुधार समिति गठित करें।  

3. मीडिया तथ्यों की जाँच करे, न कि भावनाओं को भड़काए।  

अंततः, जनता के विवेक पर छोड़ देना चाहिए कि वह किसके तर्कों को सही मानती है। परंतु इतना तय है कि संस्थाओं पर अविश्वास का यह दौर लोकतंत्र के लिए घातक हो सकता है।  

लेखकीय टिप्पणी:  यह आलेख विभिन्न समाचार पोर्टल्स, चुनाव आयोग के आँकड़ों और सार्वजनिक भाषणों के विश्लेषण पर आधारित है। किसी भी पक्ष विशेष से संबद्धता नहीं है। उद्देश्य मात्र जागरूकता फैलाना और तथ्यों को समग्रता में प्रस्तुत करना है।  #महाराष्ट्र_चुनाव_2024  

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