Sunday, August 10, 2025
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जोड़ीदारा: हिमाचल की अनोखी परंपरा जहाँ एक स्त्री बनती है कई भाइयों की पत्नी

हिमाचल की अनोखी परंपरा जहाँ एक स्त्री बनती है कई भाइयों की पत्नी

हिमाचल: एक अनोखी विवाह प्रथा की कहानी

हिमाचल प्रदेश के सुदूर पहाड़ी इलाकों में बसी हट्टी जनजाति की सदियों से चली आ रही एक सामाजिक व्यवस्था आधुनिक समाज को भी हैरान कर देती है। यहाँ के ट्रांस-गिरि क्षेत्र में “जोड़ीदारा” नामक एक परंपरा के तहत, एक ही परिवार के भाई सामूहिक रूप से एक स्त्री से विवाह करते हैं। यह कोई हालिया घटना नहीं है, बल्कि हिमालयी जनजातियों की सामूहिक बुद्धिमत्ता का परिणाम है जिसने संसाधनों की कमी को एक अनोखे सामाजिक समाधान में बदल दिया।

हाल ही में, सिरमौर ज़िले के एक गाँव में संजय और सोहन लाल नाम के दो भाइयों ने केशरी देवी से सामूहिक विवाह करके इस प्रथा को फिर से चर्चा में ला दिया है। यह आयोजन सिर्फ़ एक विवाह नहीं, बल्कि परंपरा और आधुनिकता के बीच चल रही उस बड़ी बहस का प्रतीक है जहाँ सामाजिक व्यवस्था के पुराने ढाँचे नए विचारों से टकरा रहे हैं।

जोड़ीदारा: हिमाचल सिर्फ़ एक विवाह प्रथा नहीं, बल्कि एक सामाजिक व्यवस्था

1. परिभाषा और उत्पत्ति

हिमाचल जोड़ीदारा शब्द स्थानीय बोली से आया है जहाँ “जोड़ी” का अर्थ साझेदारी और “दारा” का अर्थ दर्रा या पहाड़ी रास्ता होता है। शाब्दिक अर्थ में, यह “साझा जीवन पथ” की अवधारणा को दर्शाता है। यह प्रथा पारंपरिक रूप से उन परिवारों में मनाई जाती है जहाँ:

  • कृषि योग्य भूमि बहुत सीमित है
  • परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर है
  • पुरुष सदस्यों की संख्या अधिक है

2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भौगोलिक विस्तार

इस प्रथा के ऐतिहासिक प्रमाण हिमालय के विभिन्न भागों में मिलते हैं:

  • किन्नौर और स्पीति: यहाँ इसे “खंगमा” कहा जाता था
  • लद्दाख: “भ्रातृ बहुपति प्रथा” के रूप में प्रचलित थी
  • उत्तराखंड के कुछ भाग: जौनसार बावर क्षेत्र में भी इसी तरह की प्रथाएँ

विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रथा महाभारत काल से भी पुरानी हो सकती है, जब संयुक्त परिवार प्रणाली में संसाधनों का बँटवारा एक बड़ी चुनौती थी।

हाल की घटना: एक केस स्टडी

संजय-सोहन और केशरी का विवाह

सिरमौर ज़िले के एक छोटे से गाँव में हुआ यह विवाह स्थानीय समुदाय के लिए कोई असामान्य घटना नहीं थी, लेकिन सोशल मीडिया और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में इसकी चर्चा ने इसे राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया।

शादी के मुख्य बिंदु:

  • दोनों भाइयों (संजय 28 वर्ष, सोहन 21 वर्ष) की उम्र में 7 साल का अंतर
  • केशरी देवी (22 वर्ष) का परिवार भी इसी गोत्र का है
  • शादी से पहले तीनों की सहमति ली गई थी
  • गाँव के बुजुर्गों की मौजूदगी में पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया गया

पारिवारिक मानसिकता

एक स्थानीय साक्षात्कार में, दोनों भाइयों ने कहा:

“हमारे पास केवल 12 नाली (लगभग 1.5 एकड़) ज़मीन है। अगर हम अलग-अलग शादी करते, तो ज़मीन बँट जाती। अब हम तीनों मिलकर खेती करेंगे और भविष्य में बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देंगे।”

सामाजिक-आर्थिक कारण: यह प्रथा क्यों जीवित है?

1. संपत्ति की सुरक्षा

हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में खेती योग्य ज़मीन बहुत सीमित है। ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाने से खेती असंभव हो जाती है। जोड़ीदार परंपरा इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है।

2. श्रम का उचित उपयोग

पहाड़ी कृषि में अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। एक से अधिक पुरुष सदस्य होने से खेती और पशुपालन दोनों संभव हो जाते हैं।

3. दहेज प्रथा का अभाव

इस समुदाय में दहेज प्रथा नहीं है। एक ही विवाह में सभी भाइयों की भागीदारी से आर्थिक बोझ भी कम होता है।

4. लिंगानुपात की चुनौती

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस क्षेत्र में महिलाओं की संख्या कम है, जो इस प्रथा के बढ़ने का एक कारण हो सकता है।

कानूनी पहलू: भारतीय कानून क्या कहता है?

कानूनी स्थिति

  • हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में बहुपतित्व पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
  • धारा 494 (द्विविवाह) केवल पुरुषों पर लागू होती है।
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन बहुपतित्व पर कोई टिप्पणी नहीं करता।

न्यायिक दृष्टिकोण

केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले (2018) में माना कि बहुपतित्व तकनीकी रूप से अवैध नहीं है, लेकिन समाज इसे स्वीकार नहीं करता।

समाज का दृष्टिकोण: स्वीकृति और विरोध

समर्थकों के तर्क

  • परंपरा और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा
  • आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के साधन
  • महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना

आलोचकों का दृष्टिकोण

  • महिलाओं के अधिकारों का हनन
  • आधुनिक युग में अप्रासंगिक
  • संभावित पारिवारिक तनाव का कारण

महिलाओं की स्थिति: स्वतंत्रता या बंधन?

सकारात्मक पहलू

  • आर्थिक सुरक्षा
  • सामाजिक स्थिति में वृद्धि
  • संयुक्त परिवार का समर्थन

चुनौतियाँ

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न
  • बच्चों की पैतृक पहचान का मुद्दा
  • अंतरंगता से संबंधित मनोवैज्ञानिक पहलू

भविष्य की संभावनाएँ: क्या यह प्रथा जीवित रहेगी?

कारण गिरावट के लिए

  • शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि
  • रोजगार के नए अवसर
  • युवा पीढ़ी का पश्चिमी मूल्यों की ओर झुकाव

संरक्षण के प्रयास

  • स्थानीय संगठनों द्वारा सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रचार
  • सरकारी दस्तावेजों में इस प्रथा का उल्लेख
  • शैक्षणिक संस्थानों का प्रचार
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