फुलरई, मुगलगढ़ी, बरई सहायपुर, बमनहार गड़िया, खेरिया, नगला भगे, उमरायपुर और सिकंदराराऊ के ग्रामीण, खासकर युवा, हादसा होते ही देवदूत बनकर मौके पर पहुंच गए थे। इन गांवों के लोगों ने गड्ढे से सत्संगियों को निकालने, उन्हें निजी वाहनों और एंबुलेंस के जरिये अस्पतालों में भेजने में मदद की।
ग्रामीणों की मदद और संघर्ष
हाथरस हादसे के तुरंत बाद, फुलरई, मुगलगढ़ी, बरई सहायपुर, बमनहार गड़िया, खेरिया, नगला भगे, उमरायपुर और सिकंदराराऊ के ग्रामीण, विशेष रूप से युवा, मदद के लिए दौड़ पड़े। जैसे ही दुर्घटना हुई, ये युवा देवदूत की तरह मौके पर पहुंच गए और तुरंत गड्ढे में गिरे हुए सत्संगियों को निकालने में जुट गए। उन्होंने उन्हें बाहर निकालकर अपने निजी वाहनों और एंबुलेंस की सहायता से अस्पताल पहुंचाने का प्रयास किया।
इस दौरान उनकी चप्पलें कीचड़ में गायब हो गईं और उनके कपड़े और शरीर कीचड़ से भर गए। इसके बावजूद, वे तब तक नहीं हटे जब तक कि सभी घायल और मृतकों को निकाल नहीं लिया गया। फुलरई में जिस स्थान पर सत्संगी गड्ढे में गिर रहे थे, उससे सीधी दिशा में लगभग चार-पांच सौ मीटर दूर बरई सहायपुर के खेतों और ईंट भट्ठे पर राजकुमार, श्याम कुमार, वृजेश, वीकेश आदि अपने खेतों की रखवाली कर रहे थे।
हादसे के दौरान सेवादारों की भूमिका
दुर्भाग्य से, हादसे के दौरान भोले बाबा के सत्संग के सेवादारों का व्यवहार मददगार नहीं था। हाथरस के सिकंदराराऊ तहसील के गांव फुलरई में सत्संग के दौरान हुए हादसे के बाद सेवादार पीड़ितों की मदद में बाधक बन गए। हादसा होते ही बरई सहायपुर, फुलरई, बमनहार, गड़िया, मुगलगढ़ी आदि गांवों के लोग भागकर पहुंचे थे, लेकिन सेवादार गड्ढे में गिरे और दबे पड़े लोगों को अस्पतालों में नहीं भेजने दे रहे थे। उल्टा, वे गांव वालों को ही दूर भगा रहे थे।
बरई सहायपुर गांव के निवासी श्याम, बृजेश, वीकेश और राजकुमार ने बताया कि वे लोग खेतों से भागकर मौके पर पहुंचे थे। तब तक गड्ढे में गिरे कुछ लोगों को निकालकर खेत में लिटा दिया गया था, लेकिन उन्हें अस्पताल नहीं भेजा जा रहा था। वे लोग उन्हें अस्पताल भेजने के लिए कह रहे थे, लेकिन सेवादार उन्हें ही दूर भगाने लगे। सेवादारों का कहना था कि आसपास कोई न आए। खुली हवा मिलेगी तो थोड़ी देर में सब सही हो जाएंगे।
ग्रामीणों की दृढ़ता
शुरू में, ग्रामीणों ने कुछ देर तक दूर खड़े होकर देखा। थोड़ी देर बाद उनके गांव के कई लोग और आ गए। इसके बाद उन्होंने सेवादारों को हड़काया, तब वे पीछे हटे। तब तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंची थी। इस पर लोगों ने अपने निजी वाहनों को रोक-रोककर सभी घायलों को अस्पताल भेजना शुरू किया। बरई सहायपुर के विकेश ने कहा कि अगर सत्संग के सेवादार नहीं रोकते तो शायद कुछ घायल जल्दी अस्पताल पहुंच जाते और उनकी जान बचाई जा सकती थी।
भगदड़ के दौरान की स्थिति
फुलरई में जिस स्थान पर सत्संग चल रहा था, उसके ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर गड्ढे में लोग गिरे थे। यह गड्ढा और खेत भी फुलरई-मुगलगढ़ी न्याय पंचायत में ही आता है। जिस जगह गड्ढे में लोग गिर रहे थे, उसके आगे एक खाली खेत है और बगल में आधे खेत में चरी बोई गई है। सड़क की ओर खेत खाली है और सत्संग से पहले बारिश हो जाने के कारण पूरा खेत दलदल बना हुआ है। भगदड़ के दौरान जब सत्संग स्थल की ओर से सड़क पर आ चुके लोगों को तेज धक्का लगना शुरू हुआ तो वे सड़क के दूसरी ओर सड़क किनारे गड्ढे में गिरने से बचने के लिए चरी वाले खेत की ओर भी भागे। खेत दलदल बन चुका था।
इसमें लोगों के जूते-चप्पल छूटते रहे। वे जान बचाते हुए खेत में अंदर की ओर दौड़ते रहे। इससे खेत में खड़ी चरी की आधी फसल दलदल में दब गई थी। हादसे के दौरान ही सत्संग स्थल की तरफ भी लोग बचने के लिए पीछे की ओर खेतों में भागने लगे। इससे सत्संग स्थल के बगल के खेतों की फसल भी दलदली जमीन होने से दबकर नष्ट हो गई।
निष्कर्ष
हाथरस हादसे ने ग्रामीणों की मदद और सेवादारों के असहयोग को उजागर किया। जहां एक ओर ग्रामीणों ने अपनी जान की परवाह किए बिना मदद की, वहीं दूसरी ओर सेवादारों का व्यवहार उनकी जान को खतरे में डालने वाला था। यदि सेवादार समय पर मदद की अनुमति देते तो शायद कई जानें बचाई जा सकती थीं।
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