सच्चे भलाई के लिए जीने वाला कांवड़ यात्री: सचिन खंडेलवाल की कहानी
“परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर” – कबीरदास जी की यह प्रसिद्ध पंक्ति यह दर्शाती है कि सज्जन व्यक्ति दूसरों के कल्याण के लिए पैदा होते हैं। इस पंक्ति का सही मायने में उदाहरण हैं 25 वर्षीय कांवड़ यात्री सचिन खंडेलवाल। सचिन की कार दुर्घटना में हुई मौत ने यह साबित कर दिया है कि यह पंक्ति आज भी सत्य है। महादेव शिव के इस भक्त ने अपने छोटे से जीवन में मानवता की भलाई के लिए जो योगदान दिया, वह अनुकरणीय है। सचिन की मृत्यु के बाद उनके अंगदान से पांच गंभीर रूप से बीमार मरीजों को नया जीवन मिला है।
दुर्घटना और मृत्यु
सचिन खंडेलवाल हरिद्वार से गंगाजल लेकर महेंद्रगढ़, हरियाणा स्थित अपने घर वापस जा रहे थे। यात्रा के दौरान रुड़की में एक वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में सचिन को गंभीर चोटें आईं और उन्हें ऋषिकेश स्थित एम्स में भर्ती कराया गया। चिकित्सकों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, सचिन को बचाया नहीं जा सका।
अंगदान का निर्णय
जब सचिन का शोक संतप्त परिवार एम्स में उनके पार्थिव शरीर को लेने पहुंचा, तो चिकित्सकों ने उनसे अंगदान की इच्छा के बारे में पूछा। सचिन के रिश्तेदारों ने देखा कि मरीज मौत के मुंह में समा रहे थे, तो परिवार ने तुरंत अंगदान की सहमति दे दी। सचिन के अग्न्याशय, लीवर, किडनी और आंखों को दान के लिए चुना गया।
अंगदान से मिला जीवन
चंडीगढ़ स्थित पोस्ट-ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च और दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज ने सचिन के गुर्दे, अग्न्याशय और लीवर प्राप्त किए। नतीजतन, उत्तराखंड के दो नेत्र रोगी सचिन की आंखों की बदौलत फिर से देख सकेंगे। सचिन खंडेलवाल के अंगदान ने कुल पांच अलग-अलग व्यक्तियों को नया जीवन दिया है।
परिवार की प्रतिक्रिया
एम्स ऋषिकेश की डॉ. मीनू सिंह ने कहा, “सचिन ने कई लोगों को जीवन का तोहफा दिया है। एम्स उन्हें हमेशा एक मूक नायक के रूप में याद रखेगा।” सचिन के भाई पंकज खंडेलवाल ने कहा: “यह एकमात्र तरीका था जिससे सचिन कुछ और साल जी सकता था। मेरा मानना है कि जो लोग अंग दान करने में सक्षम हैं, उन्हें अपने दिवंगत प्रियजनों के जीवन को लम्बा करना चाहिए।” अंग दान करने के बाद सचिन के शरीर को अंतिम संस्कार के लिए एम्स में उनके परिवार को सम्मानपूर्वक लौटा दिया गया।
सारांश
सचिन खंडेलवाल की कहानी यह साबित करती है कि मानवता की सेवा में जीवन व्यतीत करने का महत्व कितना बड़ा होता है। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके अंगदान ने पांच लोगों को नया जीवन दिया। सचिन की यह कहानी प्रेरणा देती है कि कैसे हम अपने छोटे से जीवन में भी दूसरों की भलाई के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। ऐसे लोग सच्चे अर्थों में मूक नायक होते हैं, जो अपने पीछे एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं।