Thursday, June 19, 2025
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मणिपुर की हिंसा का सच: कांग्रेस पर बिरेन सिंह के तीखे आरोप

पूर्वोत्तर भारत के एक नाजुक राज्य मणिपुर में ऐतिहासिक युद्ध और अंतर-सामुदायिक झड़पें हुई हैं। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह द्वारा कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका पर सवाल उठाने और मणिपुर की हिंसा का सच: कांग्रेस पर बिरेन सिंह के तीखे आरोप में अशांति के लिए कांग्रेस की नीतियों को दोषी ठहराने के बाद, यह विषय वर्तमान में एक बार फिर सुर्खियों में है।

मणिपुर में हिंसा की उत्पत्ति: ऐतिहासिक दस्तावेजों की जांच

1990 के दशक में,मणिपुर की हिंसा तनाव का प्राथमिक स्रोत नागा और कुकी आबादी के बीच संघर्ष था। कुकी समूह मणिपुर के ऊंचे इलाकों में एक अलग पहचान बनाने का प्रयास कर रहा था, जब उन्होंने कुकीलैंड की मांग की, जिससे संघर्ष भड़क गया। विरोध नागा आबादी से आया, जिनके पास पहले से ही इन क्षेत्रों पर अधिकार थे। हजारों लोग बेघर हो गए और लड़ाई में सैकड़ों लोग मारे गए।

मणिपुर 1992 से 1997 तक नागा-कुकी युद्ध से हिल गया था।

कुकी और पैते गांवों में 1997 से 1998 के बीच सबसे ज़्यादा हिंसा हुई।

इस दौरान संघीय और राज्य स्तर पर कांग्रेस की सरकारें सत्ता में थीं, लेकिन कोई वास्तविक समाधान नहीं खोजा जा सका।

कांग्रेस की नीतियों को लेकर चिंता

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आतंकवादी संगठनों के साथ सौदे किए और म्यांमार से घुसपैठियों को बसाया। इस मुद्दे को कांग्रेस सरकार द्वारा भारतीय सेना और कुकी विद्रोहियों के बीच 2005 में किए गए “ऑपरेशन के निलंबन” सौदे के लिए भी जिम्मेदार ठहराया गया।

वर्तमान स्थिति में कांग्रेस के खिलाफ़ आरोप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हाल ही में कांग्रेस द्वारा मणिपुर में हुई हिंसा के लिए खेद व्यक्त करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया। जवाब में, बीरेन सिंह ने कांग्रेस नेतृत्व से पूछा कि क्या पी.वी. नरसिम्हा राव और आई.के. उस समय के प्रधानमंत्री गुजराल ने मणिपुर का दौरा किया था और 1990 के दशक में हुई हिंसा के लिए खेद व्यक्त किया था।

शांति प्रक्रिया की बाधाएँ

हालाँकि 1998 में कुकी और ज़ोमिस गाँवों के बीच समझौता होने पर हिंसा कम हुई थी, लेकिन शांति स्थायी नहीं थी। 2005 के समझौते के बावजूद मणिपुर में जबरन वसूली और संघर्ष जैसी समस्याएँ बनी रहीं।

राजनीतिक आरोपों और खंडनों के प्रभाव

मणिपुर में मौजूदा हालात को लेकर विपक्षी दलों, राष्ट्रीय सरकार और राज्य सरकारों की राजनीतिक मुद्रा के बावजूद समाधान खोजने का कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के अनुसार, कांग्रेस को राज्य की राजनीति को अलग रखकर समाधान खोजने में मदद करनी चाहिए।

आगे का रास्ता

मणिपुर की जटिल सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का समाधान सिर्फ़ राजनीतिक दलों के आरोपों और खंडन से नहीं हो सकता। इसके लिए समावेशी कानून, अंतर-सामुदायिक संचार और एक लंबी शांति प्रक्रिया की ज़रूरत है।

निष्कर्ष मणिपुर के ऐतिहासिक संघर्षों से पता चलता है कि राजनीतिक अस्थिरता और सांप्रदायिक तनाव ने राज्य को लंबे समय तक प्रभावित किया है। चूंकि राज्य अशांति के एक और दौर में प्रवेश कर रहा है, इसलिए सभी राजनीतिक दलों के लिए यह ज़रूरी है कि वे अतीत से सीखे गए सबक पर ध्यान दें और मणिपुर के लोगों के लिए दीर्घकालिक समाधान की दिशा में प्रयास करें।

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